"मेरे पिता की मृत्यु TB से हुयी थी। उनकी प्राथमिक जांच और इलाज एक जाने-माने निजी अस्प्ताल में हो रही थी।"

अरुन सिंह राणा पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल, टीबी विजेता

मेरे पिता की मृत्यु TB से हुयी थी। उनकी प्राथमिक जांच और इलाज एक जाने-माने निजी अस्प्ताल में हो रही थी। यह सब वहां पर एक बहुत ही अस्प्ष्टँ जांच के आधार पर हुआ था। उनकी TB का पता हमें एक सरकारी अस्पताल के माध्यम से चला मगर तब तक काफी देर हो गयी थी।

सालों बाद जब मैंने लगातार खाँसना शुरू किया तब इस घटना की याद दुबारा ताज़ा हो गयी। पहली बार डॉक्टर को दिखाने पर उसने मुझे कुछ दवाइयां दी मगर मेरी हालत बिगड़ती चली गयी, बाद में जब X-RAY की रिपोर्ट आयी तब पता चला की मेरे बाएं फेफड़े का नीचे का हिस्सा बर्बाद हो चुका है।

मैं खुद बहुत समय से चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहा था। इस वजह से मैं इस स्थिति के लिए तैयार था। सही इलाज और मेरे परिवार की सहायता से मैं बहुत जल्द बिलकुल ठीक हो गया। मुझे ये भी पता था की सबके पास मेरी तरह आर्थिक साधन नहीं होते की वो समय पर TB की जांच और इलाज करवा पाए। इस वजह से हर साल हज़ारों लोगों को गलत जांच और इलाज की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

भारत मे सबसे बड़ी चुनौती TB की जांच है। यहाँ TB की जांच के लिए Sputum Smear Microscopy का इस्तेमाल होता है। इस जांच प्रक्रिया में सिर्फ 50 प्रतिशत बार ही TB का पता चल पाता है। निजी अस्पताल कई अलग अलग जांच प्रक्रियाों का इस्तेमाल होता है। इनमे से कई जांच प्रक्रियाएं असक्रिय TB की जांच के लिए इस्तेमाल होती है। इस वजह से काफी बार TB का पता भी नहीं चलता और जांच की रिपोर्ट भी गलत आती है। इसके अलावा drug resistant TB (DR TB) जांच ना के बराबर होती है।

ज़्यादातर भारतीय इलाज के लिए निजी अस्पातालों पर निर्भर रहते हैं। यहां TB की जांच के लिए काफी ग़लत तरीकों से होती है। सरकारी अस्पातलों में बस एक ही तरह की जांच ही होती है। इस जांच से DR TB का पता नहीं चलता। जिसका मतलब ये है की मरीज़ों में DR TB का पता देर से चलता है जिसका मतलब ये है की इसका इलाज भी देर से शुरू होता है। गलत इलाज, साइड इफेक्ट्स, मानसिक तनाव, और सही इलाज करना एक पहाड़ के बराबर हो जाता है।

TB से जुडी शर्मिंदगी और इसके बारे में जागरूकता की कमी भी एक कारण है की यह इतनी बड़ी चुनौती है। यह शर्मिंदगी व्यक्तिगत व समाजिक दोनों होती है। इसकी वजह से होकर कई बार TB के मरीज़ अपनी बिमारी को ना सिर्फ छुपाते हैं बल्कि वो इसका इलाज भी नहीं करवाते। मुझे याद है की मुझे ये जानकर कितनी शान्ति महसूस हुयी थी की मेरी मंगेतर मेरी बीमारी के बारे में सुनने के बाद भी मेरा साथ देना चाहती थी। TB के मरीज़ों के विरुद्ध कार्यस्थल और अन्य सार्वजनिक जगहों पर बड़े पैमाने पर होने वाले भेदभाव की वजह से कई मरीज़ खुद ही समाज से कटने लगते हैं।

निजी अस्पतालों में TB की जांच, दवाईंया, और इलाज काफी महंगे होते हैं। सरकारी अस्पताल जहां ये सारी चीज़ें निशुल्क है वहाँ भी अप्रत्यक्ष खर्च, जैसे की X-RAY, आना-जाना, और अस्पताल में रुकने का शुल्क, बहुत ज़्यादा होता हैं।

मरीज़ों की ज़रूरतें क्या है?

जागरुक्ता बढ़ाना और लोगों के दिमाग से टीबी को लेकर गलत पूर्वाग्रह हटाना बहुत ज़रूरी है। जल्द, सही, व मुफ्त जांच एक प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके अलावा Drug Sensitivity Test (DST) पर आधारित चिकित्सा की महत्वपूर्ण है।

समुदायों और परिवारों को जागरूक करना और उनके मन में TB के बारे में बैठी गलतफहमियों को हटाना भी ज़रूरी है ताकि बिना किसी चुनौती के इलाज संभव हो पाए।

तत्काल यह ज़रूरी है की सरकारी और निजी अस्पताल चिकित्सा क्षेत्र के अन्य अंगो के साथ साझेदारी करें ताकि हर मरीज़ तक उसकी आर्थिक स्थिति के बावजूद मुफ्त जांच व इलाज पहुँचाना मुमकिन हो पाए। समय है की हम TB को प्राथमिकता दें और अपनी तकनीकी उन्नति का इस्तेमाल करते हुए ताकि हम मरीज़ों को बेहतर जांच, सहायता और शिक्षा दे सके। ऐसा ना करने पर कई लोगों की ज़िन्दगी प्रभावित होगी जिससे की भारत की प्रगति में रुकावट आ सकती है। भारत को TB मुक्त करना भारत को गरीबी और पीड़ा से मुक्त करना है।