क्षयरोग या टीबी भारत की गंभीरतम स्वास्थ समस्या है। इससे प्रतिदन लगभग 1,400 भारतीयों की मौत होती है और हर मिनट एक भारतीय जान गंवाता है। महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव और खतरों की अक्सर उपेक्षा होती है। भारत में प्रसव संबंधी कारणों से होने वाली कुल मौतों की संख्या से अधिक महिलाओं की मृत्यु टीबी से होती है। फिर भी, इस समस्या का महिलाओं से विशेष जुड़ाव, हम शायद ही स्वीकार करते हैं।
हमने महिला टीबी सरवाइवर्स (टीबी से ठीक हुई महिला मरीज़ों) की कहानियों को दर्ज किया है- यह दर्शाने के लिए कि कैसे टीबी इनके लिए अपेक्षाकृत अधिक पीड़ादयक है। ये कहानियां एक पुरुष प्रधान समाज में इन साहसी महिलाओं का जीवन सफर दर्शाती हैं, जहां उन्होंने इस बिमारी के कलंक का सामना किया। कई मामलों में दयनीय सामाजिक-आर्थिक स्थिति और जागरूकता की कमी से जांच और इलाज में काफी देरी हुई। तब भी ये महिलाएं टीबी से लड़ती रहीं।
ये कहानियां हमें क्या बताती हैं? यह कि महिलाओं को उन परिस्थितियों में भी टीबी से कठिन संघर्ष करना पड़ता है जब उनके परिवार, समाज और कभी-कभी तो स्वास्थ्य प्रणाली भी उनका साथ छोड़ देती है।
हमारी कोशिशों का उद्देश्य राजनीतिक प्रतिबद्धता और संसाधनों को सक्रिय करना है, ताकि सुविधाएं बिना लिंग भेद के उपलब्ध हों। इन कोशिशों में महिलाओं और बच्चों को अनुकूल सेवाएं दिलाने के लिए आवाज़ उठाना भी शामिल है। हमने इन चुनिंदा कहानियों का एक संकलन अंग्रेज़ी और हिंदी में तैयार करके सभी संसद सदस्यों को भेजा है।
हमने क्या मांगा है?
हमने संपूर्ण स्वास्थ्य प्रणाली में समानता निर्माण करने की सिफारिश की है और महिलाओं और बच्चों को उपचार हासिल करने, या उपचार पूरा करने में पेश आने वाली मुश्किलों के प्रति स्वास्थ्य कार्यक्रमों को संवेदनशील बनाए जाने का आग्रह किया है। यहां इनसे जुड़ी एक सूची प्रस्तुत है।
अंत में, भारत तब तक टीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई नहीं जीत सकता, जब तक महिलाओं को इसके लिए सशक्त नहीं बनाया जाता।