यह सब 2014 के दिसम्बर में शुरू हुआ। दिपतेन्दु ने अभी-अभी CSIR NET की परीक्षा में काफी अच्छा स्थान प्राप्त किया था। एक उज्जवल व रोचक भविष्य उसकी प्रतीक्षा में था। उस शाम मुझे अपने जीभ पर काले धब्बे दिखे। मैंने जब पानी से कुल्ला कर उसे थूका तोह वो पानी भी लाल हो गया। मैंने इस घटना को नज़रअंदाज़ किया। इसके अगली शाम मुझे खांसी का दौरा पड़ा और खांसते वक़्त मेरे मुंह से फिर खून निकला।
इसके कुछ ही दिनों बाद मैंने IIT खड़कपुर में दाखिला ले लिया और लगातार क्लास्सेस के साथ परीक्षा की तयारी करने लगा। मेरी खांसी इस दौरान भी चालु थी। मेरे सहकर्मियों व लैब पार्टनर्स को मेरी चिंता होने लगी और वो मुझसे मेरी सेहत के बारे में पूछने लगे।
मेरे पास इसका बहुत अच्छा जवाब था - मैं बहुत काम कर रहा हूँ। मैं हमेशा हांफता रहता था पर मैं अब भी इस सबको नज़रअंदाज़ कर रहा था। मुझे भरी दोपहरी में ठण्ड से कंप-कंपाहट होती थी। अपने इम्तिहान के आखिरी दिन मैंने आखिरकार कॉलेज में ही डॉक्टर को दिखाया। वहां डॉक्टर ने मुझे बुखार और खांसी की दवाई दी और दो दिन में X-RAY करवा कर आने बोला। जब मैं दुबारा अस्पताल गया तो उन्होंने मेरी दवाइयां बदल दी। मैं अपनी चिकित्सा से संतुष्ट नहीं था तो इसलिए मैं अपने घर वापस आ गया और यहां मैंने एक डॉक्टर को दिखाया तो उसने फिर मेरी दवाइयां बदल दी पर अभी तक किसीको भी ये नहीं लगा की मुझे TB हो सकता है।
इसके बाद मैंने हमारे फॅमिली डॉक्टर को दिखाया। वो काफी चिंतित लगे और उन्होंने मुझे एक चेस्ट स्पेशलिस्ट के पास भेजा जिन्होंने मुझे आखिरकार TB पीड़ित घोषित किया और मेरा इलाज शुरू हुआ। मेरी ज़िन्दगी पूरी तरह से मेरे इलाज पर केंद्रित हो गयी।
मैं ज़्यादातर घर पर ही रहने लगा और हैरी पॉटर पढ़कर और गाने सुनक्र अपने दिन काटने लगा। मैं हर दुसरे दिन डॉट्स सेंटर जाने लगा। उन दिनों मरीज़ को खुद जाकर डॉट्स कार्यकर्ता की निगरानी में दवाई लेनी होती थी। इस सबके बावजूद मेरी तबियत बिगड़ती गयी। मुझे अक्सर उल्टियां होने लगी और मेरी भूख मर सी गयी थी। 2015 के जून में जब मेरी दवाइयों का पहला कोर्स खत्म हुआ तब मैं इस उम्मीद में था की मैं बिलकुल ठीक हो गया हूँगा और वापस खड़कपुर लौटकर पढ़ाई कर सकूंगा।
जब मेरी रिपोर्ट्स आयी तो उनमे लिखा था की मुझे Multi Drug Resistant TB है। जिसका मतलब था की मेरा TB काफी खतरनाक था और मेरा इलाज और दो साल चलने वाला था।
MDR TB से लड़ना मुश्किल तो था ही साथ ही रोग से जुड़े अपवाद ने इसे और मुश्किल बना दिया हालांकि मैंने यह कम ही झेला। डॉक्टर मेरे कमरे में नहीं आता था और मुझे ताने भी मारता था। मैं जिस अस्पताल में था वो खुद भी किसी जंगल से कम नहीं था।
MDR TB के इलाज के लिए मुझे जो सुइयां लगातार लेनी होती थी उनमे से पहली वाली को लेते ही मुझे इतना तेज़ दर्द हुआ की मैं दिनभर कंधे के ऊपर अपना हाँथ नहीं उठा सका। जल्द ही मुझे खुद ये इंजेक्शंस खरीदने पड़े। इनके ऊंचे दामों की वजह से इन्हे खरीद पाना तो मुश्किल था मगर इनके ना मिलने पर मेरी तबियत पर होने वाले असर का डर ज़्यादा था।
मेरे ऊपर इसके काफी साइड इफेक्ट्स भी हुए। मेरी नज़र और मेरी लिखावट दोनों बिगड़ने लगे। मेरे कान सूख गए और मेरे मुंह का स्वाद अजीब सा हो गया। कुछ समय बाद मेरे इलाज ने काम करना शुरू किया और आखिर में जाकर 2015 के दिसंबर में मेरी जांच के रिपोर्ट्स TB नेगेटिव आये। मेरी पहली रिपोर्ट के एक साल बाद मैं TB मुक्त था।
जनवरी 2016 में मैंने अपनी पढ़ाई दुबारा शुरू करने की कोशिश की मगर मेरे इलाज में रुकावट आने की वजह से मैंने पढ़ाई छोड़ कर दोबारा पढ़ाना शुरू करने का फैसला किया। मैंने अपने कई पुराने दोस्तों से जुड़ा। मैं एक कमाल की लड़की से मिला और मुझे उससे प्यार हुआ। मैंने दिखावटी चीज़ोन से ज़्यादा ज़िन्दगी को अहमियत देना शुरू किया। और इन सबसे बढ़कर मुझे इस सबसे बढ़कर ये एहसास हुआ की ज़िंदा होना कितनी खुशकिस्मती की बात है। मेरा मानना है की इस अनुभव के बाद में एक ज़्यादा समझदार और सुलझा हुआ शख्स हूँ जो की प्यार और उम्मीद से भरा हुआ है।