टीबी एक उपचार योग्य बिमारी है। फिर भी भारत में टीबी से लाखों मरीज़ों की मौत होती है। ऐसा अक्सर इसलिए होता है क्योंकि या तो उनकी जांच सही ढंग से नहीं होती या फिर उपचार गलत होता है। चूंकि टीबी हवा से फैलने वाली बिमारी है, इसलिए एक ऐसा मरीज़ जिसकी जांच गलत तरीके से हुई हो, वह दूसरों को संक्रमित कर सकता है। इसके अलावा, गलत उपचार से इस बिमारी की दवा प्रतिरोधक क्षमता निर्माण हो जाती है। अक्सर टीबी जांच और उपचार से जुड़ी चुनौतियां आर्थिक, सामाजिक एवं शारीरिक बाध्यताओं से संबंधित होती है, जिसके तहत रोगी जांच हासिल नहीं कर पाता और इलाज को जारी रखने व पूरा करने में असफल रहता है। हम टीबी के संकट को तब तक हल नहीं कर सकेंगे जब तक टीबी जांच एवं उपचार प्रक्रिया में सुधार नहीं आता और यह सुनिश्चित नहीं किया जाता कि सभी टीबी पीड़ित भारतीयों के लिए शीघ्र जांच और उपचार उपलब्ध हो!
टीबी जांच एवं उपचार की चुनौतियां
जांच में देरी: टीबी का मरीज़ बिना जांच के रह जाता है, इसलिए कई कारणों से इलाज भी नहीं होता। इन कारणों में शामिल हैं - टीबी जांच के पुराने साधनों का प्रयोग; सक्रिय टीबी की पहचान के लिए मौजूदा जांच साधनों का गलत इस्तेमाल और साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्यताप्राप्त शीघ्र निदान टीबी परीक्षण (रैपिड डायग्नॉस्टिक टीबी टेस्ट्स) के उपयोग में कमी। हालांकि, जांच में देरी का एक प्रमुख कारण अक्सर कम जानकारी होना और स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता होता है। अधिकतर मामलों में जब तक टीबी की जांच हो पाती है तब तक या तो यह विकसित चरणों में होती है या फिर दवा प्रतिरोधक बन जाती है।
गलत उपचार और कम अनुपालनः
अगर किसी मरीज़ में टीबी की पहचान हो भी जाती है, तब भी इन्हें, खासकर निजी अस्पतालों में गलत उपचार दिया जाता है। इस वजह से मरीज़ों को अधिक पीड़ा, बिमारी में वृद्धि, दवा प्रतिरोध और कभी-कभी मौत जैसे परिणामों का सामना भी करना पड़ता है। वहीं, उपचार को पूरा करना डॉक्टर के साथ-साथ मरीज़ की जिम्मेदारी भी बनती है। हालांकि, मरीज़ों को टीबी का इलाज पूरा करने के परिणाम समझाने के लिए लगभग ना के बराबर परामर्श दिया जाता है। इसके अलावा, डॉक्टरों की तरफ से भी उपचार हेतु मरीज़ों से संपर्क करने में कोताही बरती जाती है और जिन मरीज़ों ने उपचार लेना बंद कर दिया है, उनकी नियमित निगरानी नहीं होती।
कमज़ोर समझ और जागरूकता में कमीः
अधिकतर टीबी रोगियों को प्रभावशाली जांच एवं उपचार की पर्याप्त जानकारी नहीं होती। इसके साथ निगरानी में कमी होने से अक्सर जांच में देरी और उपचार में रुकावट आ जाती है, जिससे टीबी को बढ़ावा मिलता है। वहीं, खासतौर पर इलाज के लिए मरीज़ में जागरूकता बेहद कम और सीमित है। साथ ही समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी इस बिमारी का कलंक और मरीज़ों के प्रति भेदभाव, टीबी इलाज के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
क्या किया जाना चाहिए?
टीबी के प्रति जन जागरूकता निर्माण किया जाए, जिससे इस बिमारी की रोकथाम सुनिश्चित हो और लांछन में कमी लाई जा सके:
भारत को तत्काल सार्वजनिक जागरूकता, रोकथाम, सामाजिक जुड़ाव और लांछन में कमी लाने जैसे मुद्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। टीबी सरवाइवर्स (टीबी से ठीक हुए मरीज़) और टीबी प्रभावित समुदाय, डरते हुए इलाज हासिल करते हैं और इन्हें अक्सर उपचार हासिल करने या टीबी के बारे में बताने में झिझक रहती है क्योंकि समाज में ऐसे मरीज़ों के प्रति काफी भेदभाव है। टीबी के खिलाफ हमारी लड़ाई की शुरुआत लोगों तथा समुदायों को जानकारी के साथ सक्षम बनाने और समाज में मौजूद लांछन को कम करने से होनी चाहिए।
एक व्यापक मल्टी-मीडिया जागरूकता अभियान तैयार किया जाए, जिससे सभी प्रकार की टीबी के लिए जागरूकता निर्माण हो सके, उनके लक्षण बताएं जा सकें और इस बिमारी की शीघ्र जांच और इलाज का महत्व समझाया जाए।
अब तक नज़रअंदाज की जाती रही एक्स्ट्रा पल्मनरी टीबी के लिए जागरूकता फैलाने पर ज़ोर दिया जाए और इससे पीड़ित मरीज़ों पर भी दिया जाए जो अब तक जांच तथा उपचार में देरी से प्रभावित हैं।
सामाजिक एवं संस्थागत संक्रमण नियंत्रण उपायों को मज़बूत बनाया जाए, जो खासकर अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों में एक ठोस रोकथाम साधन की भूमिका निभाएं।
यह सुनिश्चित किया जाए कि टीबी प्रभावित लोगों और उनके परिवारों को परामर्श मिल सके जिससे रोकथाम असरदायक हो और टीबी पीड़ितों को परिवार का समर्थन मिल सके।
प्रत्येक भारतीय के लिए शीघ्र एवं सटीक जांच:
गहन शोध में यह सामने आया है कि भारत में टीबी की महामारी फैलने और इसके दवा प्रतिरोधक मामले बढ़ने के प्रमुख कारणों में जांच में देरी और गलत जांच होना शामिल है। सही जांच सुनिश्चित करने के लिए निम्न कदम उठाए जा सकते हैं:
2017 तक स्प्यूटम स्मियर माइक्रोस्कोपी के स्थान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यताप्राप्त अत्यधिक संवेदनशील मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स लाया जाए, साथ ही लिक्विड कल्चर और डीएसटी की क्षमता भी बढ़ानी होगी।
सभी प्रकार की टीबी की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करने के लिए नये डायग्नोस्टिक परीक्षण में तेजी लाई जाए और सभी टीबी रोगियों को सार्वभौमिक दवा संवेदनशीलता परीक्षण (डीएसटी) मुहैया कराएं।
सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में इलाज की ज़रूरत वाले हर भारतीय को मुफ्त एवं सही टीबी जांच की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कार्यप्रणाली बनाएं।
श्रेष्ठ से कम गुणवत्ता वाली जांच के चलन या इसकी शुरुआत को रोकने के लिए यह सुनिश्चित करें कि सभी नए टीबी डायग्नोस्टिक्स को अनुमति दिये जाने से पहले इनकी कड़ी जांच हो।
टीबी इलाज में बदलावों को प्राथमिकता:
भारत में टीबी उपचार प्रक्रियाएं अब भी आपसी संपर्क में नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय कार्यप्रणाली और सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के बीच तालमेल की जरूरत है। इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन निम्न हो सकते हैं:
निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी निर्माण करते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र समान दिशानिर्देशों के आधार पर उपचार एवं जांच सुविधाएं प्रदान करें
मान्यताप्राप्त सार्वजनिक और निजी दुकानों/दवाखानों पर प्रत्येक रोगी के लिए पूरे उपचार की अवधि के लिए गुणवत्ता प्रमाणित दवाएं उपलब्ध कराएं।
सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में इलाज कराने वाले सभी मरीज़ों के लिए मुफ्त दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करें।
बेडाकूलाइन एवं डेलामिनिड जैसी नई विकसित दवाएं सरकारी तंत्र के जरिये सर्वाधिक ज़रूरत वाले रोगियों के लिए तत्काल उपलब्ध कराएं।
प्रत्यक्ष निगरानी में मरीज़ों को अनियमित आहार से दैनिक नियमित आहार के लिए स्थानांतरित किया जाए। इससे सभी क्षेत्रों में एक समान स्वास्थ्य सेवाएं दी जा सकेंगी। साथ ही, इलाज की सर्वत्र उपलब्धता सुनिश्चित होगी और दवा प्रतिरोध आगे बढ़ने से रोका जा सकेगा।
उचित इलाज सुनिश्चित करने और एमडीआर टीबी के मामलों को एक्सडीआर टीबी बनने से रोकने के लिए सभी संदिग्ध दवा प्रतिरोधी टीबी मरीज़ों के लिए एक मानक रूप में दवा संवेदनशीलता परीक्षण निर्देशित उपचार प्रदान करना।
“अक्सर टीबी जांच और उपचार से जुड़ी चुनौतियां आर्थिक, सामाजिक एवं शारीरिक बाध्यताओं से संबंधित होती है, जिसके तहत रोगी जांच हासिल नहीं कर पाता और इलाज को जारी रखने व पूरा करने में असफल रहता है।"
भारत टीबी को तब तक नहीं हरा सकता जब तक टीबी से पीड़ित लाखों लोगों को सही जांच एवं उपचार सुलभ ना हों। इनमें ड्रग रेसिस्टेंट टीबी की जांच एवं उपचार भी शामिल हैं। जांच का विनियमन, नई प्रौद्योगिकी का परिचय और जनता में जागरूकता, भारत की इस टीबी की लड़ाई में एहम कदम हैं। जब तक हम ऐसा नहीं करते, तब तक टीबी भारतियों को मारता रहेगा और इस देश पर आर्थिक एवं सामाजिक बोझ बना रहेगा। यह बहुत ज़रूरी है कि, भारत के वासी, ख़ास तौर पे वह लोग जो गरीब हैं, टीबी से संक्रमित ना हों।