"मैं मुंबई के Sir J. J. School of Art की छात्रा हूँ इसके अलावा मैं freelance commercial photographer भी हूँ। मुझे 2013 में 19 साल की उम्र में पता चला की मुझे TB है जब मेरी खांसी काफी बढ़ गयी और वज़न कम होने लगा। "

मानसी खाडे फ्रीलांस फोटोग्राफर, एक्सडीआर टीबी विजेता

मुंबई के Sir J. J. School of Art की छात्रा हूँ इसके अलावा मैं freelance commercial photographer भी हूँ। मुझे 2013 में 19 साल की उम्र में पता चला की मुझे TB है जब मेरी खांसी काफी बढ़ गयी और वज़न कम होने लगा। हिंदुजा अस्पताल में हुए मेरे टेस्ट्स से पता चला की मुझे extensively drug resistant XDR-TB है। मैंने बिलकुल वक़्त ना गवांते हुए तुरंत सही इलाज करवाना शुरू किया। मेरा यह सौभाग्य रहा की वह एक दवाई छोड़ कर जिसकी वजह से मुझे उल्टियां हुयी मुझे और कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हुए। मुझे Bedaquiline भी देना शुरू कर दिया। यह एक नई दवाई थी जिसे की छ: महीने के लिए extensively drug resistant XDR-TB के मरीज़ों को दिया जाता था।

छह महीने तक सही दवाइयां लेने और सर्जरी द्वारा मेरे फेफड़ो का एक हिस्सा निकालने के बाद मैं पूरी तरह ठीक हो गयी। मेरा वज़न दोबारा बढ़ने लगा और और मैं अपनी नियमित दिनचर्या को लौट गयी। इलाज में मेरी सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक थी। मेरे परिवार को मेरे इलाज के लिए मेरे घर का एक कमरा बेचना पड़ा। इस भयावह बिमारी से मेरे परिवार का पुराना नाता था।

मेरे पिता, दादा, और चाचाओं को भी TB हो चुका था और यह सब भी इससे बच गए थे। मैं इस इतिहास को कड़वाहट के साथ नहीं बल्कि उम्मीद के साथ दोहरा रहीं हूँ। मेरे अनुभव ने मेरी ये जानने में मदद की थी की मुझे इस बीमारी से क्या अपेक्षा होनी चाहिए और इससे ऐसे निपटना है और इसी अनुभव ने यह भी सुनिश्चित किया मुझे सबका पूरा साथ मिले। जब मैं बिमारी की वजह से घर पर थी उस साल मेरे भाई ने कई बार अपना काम छोड़कर घर पर रहकर मेरी देखभाल की। मेरी करीबी दोस्त अक्सर मुझसे मिलने आया करते थे और मेरे साथ कई बार डॉक्टर के पास भी गए।.

मैंने देखा की लोगों में जो TB को लेकर जागरूकता की कमी है वह कितनी हानिकारक हो सकती है। हालांकि मेरे दोस्त मुझसे हमेशा की तरह ही पेश आ रहे थे लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें मुझसे दूर रहने की हिदायत दी। मेरे दोस्त उनसे कहते की " यह एक आम बिमारी है, किसीको भी हो सकती है, हमें बस कुछ सावधानी बरतनी होगी।" हमारी पीढ़ी ये बातें समझती है लेकिन उनकी पीढ़ी के दिमाग में अभी भी बहुत से डर हैं और उनमे जागरूकता की बहुत कमी है। करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों के अलावा मुझे किसीको भी मेरी बिमारी के बारे में बताने की मनाही थी। मेरे दूर के रिश्तेदार, पडोसी, और मेरे कॉलेज के सहपाठियों में से किसीको भी मेरी तकलीफों के बारे में पता नहीं था।

मैं लोगों को बताना चाहती थी ताकि सब सावधान रह सकें। मैं मरीज़ थी लेकिन मेरी नज़र में मैं अकेले इस बीमारी को नहीं झेल रही थी। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ इसे झेल रहा था। मुझे लगातार उनपर हद से ज़्यादा बोझ डालने का डॉ लगा रहता था जिस वजह से मैं अपनी कठिनाइयों को छोटा दिखाती थी। मैं अपनी बिमारी के बारे में मज़ाकिया तरीके से बात करती थी। मैं अपने दोस्तों से कहती थी "TB हुआ यार बोर हो गयी मैं एक साल।" मैं मज़ाक करती थी ताकि कोई ज़्यादा चिंता ना करे।

2016 में मैं कॉलेज और फ्रीलांस फोटोग्राफर की तरफ लौट गयी। मेरी ज़िंदगी फिर से साधारण हो गयी। लेकिन मुझे अभी भी डर लगा रहता है। हालांकि मैं बीमारी से उभर चुकी हूँ मुझे डर लगा रहता है की वह फिरसे लौट आएगा।