टीबी, गरीबी और कुपोषण

सामाजिक, आर्थिक और परिवेश की वजहों से टीबी बड़ी संख्या में गरीबों को प्रभावित करती है। गरीबी और कुपोषण टीबी के लिए बड़े खतरे हैं। ये प्रमाणित हो चुका है कि इन दोनों स्थितियों का टीबी के निदान और इलाज से सीधा संबंध है।

गरीबीः टीबी मरीज को, जांच और इलाज के महंगे खर्च सहित, स्वास्थ्य के लिए तीव्र आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। आमदनी घटने से अप्रत्यक्ष खर्च भी बढ़ता है। इससे मरीज या तो जांच, इलाज नहीं करवा पाता या देरी से करवाता है। नतीजतन, रोग तेजी से फैलता है और अंततः मौत तक पहुंचा देता है।

टीबी की वजह से, बड़ी संख्या में लोग वित्तीय रूप से हताश हो जाते हैं। एमडीआर-टीबी के मरीज, जिनको जांच और इलाज के लिए, अपेक्षाकृत अधिक खर्च करना पड़ता है, वो और भी गरीब होते जाते हैं।

कुपोषणः कुपोषण का संबंध गरीबी और भूख से है। इनसे रोग मुक्ति में विलंब होता है, मरीजों में मृत्यु दर बढ़ती है। इसके स्पष्ट प्रमाण हैं कि टीबी मरीज, जिनकी खुराक और पाचन शक्ति कम होती है, और शरीर नष्ट होने लगता है। महंगे इलाज के कारण गरीब हुए मरीज, रोग मुक्ति के लिए प्रायः पौष्टिक आहार नहीं ले पाते।

कैसे जानलेवा है टीबी का अर्थशास्त्र

  • गरीबों के लिए, टीबी के इलाज का आर्थिक बोझ तत्काल जांच में बाधक है। इससे रोग फैलता है।

  • जांच के बाद आवागमन, भोजन के खर्च और आय में नुकसान, परिवार को कर्ज में धकेल देते हैं। इससे इलाज की निरंतरता प्रभावित होती है।

  • एक अध्ययन बताता है कि भारत में कोई टीबी मरीज, अगर रोग की जांच कराता है, तो औसतन उसकी तीन महीने की आय खर्च हो जाती है।

  • निर्धनता के कारण विलंबित, रुक-रुक कर और अधूरा इलाज न सिर्फ टीबी रोगी की सेहत के लिए खतरनाक होते हैं, बल्कि इससे परिवार या इससे बाहर के लोगों में भी रोग का खतरा बढ़ता है।

  • बदतर कुपोषण की वजह से इलाज प्रभावित और प्रायः असफल भी हो जाता है।

  • गरीब परिवार टीबी के महंगे इलाज की वजह से जरूरतें घटाते हैं, संपत्ति बेच देते हैं और कर्ज में डूब जाते हैं। नतीजे में अभाव और दरिद्रता बढ़ती है।


क्या किया जा सकता है?

भारत में इन दोनों समस्याओं से निपटने के लिए व्यापक कार्यक्रम बनाने की जरूरत है। उपलब्ध प्रमाण और वैश्विक अनुभवों के आधार पर भारत निम्नलिखित कार्यक्रम बना सकता है, जो टीबी मरीज की जरूरतों को पूरा करेंगेः


वित्तीय सहायता कार्यक्रमः

इनमें प्रत्यक्ष धन स्थानांतरण शामिल हैं- जैसे सामाजिक सुरक्षा प्रणाली या एक कार्यक्रम की प्रोत्साहन राशि, यात्रा भत्ता, इलाज भत्तों के लिए नगद भुगतान, और ऐसे भुगतान जो सीधे प्रभावित व्यक्तियों को यह सुनिश्चित करने के लिए किये जाते हैं ताकि वो गरीबी या कर्ज के बोझ तले ना दबें।


खाद्य एवं पोषण सहायताः

इलाज करा रहे टीबी मरीज के पोषण व उनको मिलने वाले परामर्शों का सामियक मूल्यांकन हो। ये इलाज की शुरुआत से लेकर इलाज चलने की रिपोर्ट पर आधारित होगा। अगर रोगी पर्याप्त पोषण के खर्च में अक्षम है तो, उसे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना होगा। ठोस और अतिरिक्त आहार मरीज को सामान्य पोषक अवस्था हासिल करने में मददगार होते हैं।


परिवहन सहायताः

इस तरह का सहयोग गरीब मरीजों और परिवारों के लिए बहुत ही कारगर सिद्ध होगा। ये सत्य है कि कई क्षेत्रों में उपचार केंद्र दूर होते हैं, और उन तक पहुंचना महंगा होता है।


सामाजिक देखभाल प्रणालीः

क्लिनिक आधारित इलाज व देखभाल रोगी पर बड़ा आर्थिक बोझ डालते हैं। सेवाओं तक पहुंच को दयनीय भौगोलिक-वित्तीय अवस्था और भी दुरूह बनाते हैं। ऐसे में समुदाय आधारित इलाज व देखभाल कार्यक्रम टीबी इलाज के खर्च को घटानें में उल्लेखनीय प्रभावशाली सिद्ध होंगे।


कौशल विकास एवं वित्तीय सहायताः

टीबी के इलाज के बाद मरीज या प्रभावित परिवार की आय बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना अति आवश्यक है। विशेषकर ये उन लोगों के लिए जरूरी होगा, जो अस्थाई काम करते हैं, और बीमारी की वजह से रोजगार खो बैठते हैं। इससे ये सुनिश्चित होगा कि टीबी रोगी या प्रभावित परिवार पुनः अपनी जीविका पटरी पर ला सकेंगे और दरिद्रता से बचेंगे।

यह सिफारिशें हमारे अपने अपने अनुभवों पर आधारित हैं। हम सरकार से विनती करते हैं कि, हमारे द्वारा सूचित किये गए इन विषयों पर करवाई करें और बदले में प्रभावी टीबी निवारण एवं नियंत्रण लागू करें