"मैं अपने माता पिता के साथ ग़ाज़ियाबाद में दिल्ली से 43 किलोमीटर रहती थी और मुझे पता चला कि मुझे नॉन पल्मोनरी TB है मेरा पहला MRI स्कैन 2014 में हुआ। तब मुझे पता चला की मेरे दिमाग़ में कांग्लोमरेट रिंग -एन्हान्सिंग लेशन्स है ।"

बुलबुल शर्मा टीबी विजेता, अध्यापिका

मैं अपने माता पिता के साथ ग़ाज़ियाबाद में दिल्ली से 43 किलोमीटर रहती थी और मुझे पता चला कि मुझे नॉन पल्मोनरी TB है मेरा पहला MRI स्कैन 2014 में हुआ। तब मुझे पता चला की मेरे दिमाग़ में कांग्लोमरेट रिंग -एन्हान्सिंग लेशन्स है ।

यहाँ से मेरे मुश्किल सफ़र की शुरुआत हुई थी शुरुआत हो गयी| लक्षण सिर्फ सिरदर्द, तेज बुखार, हल्के वज़न में कमी थे। फिर ग़ाज़ियाबाद के एक डॉक्टर द्वारा मेरे मस्तिष्क के एक्सरे पर आधारित पहला डायग्नोसिस हुआ जिससे मुझे पता चला की में साइनस से संक्रमित हूँ।

हालाँकि हल ही में मेरे परिवार में TB का मामला हुआ था इसलिए मैंने स्किन टेस्ट भी करा लिया। लेकिन उसे कुछ ख़ास पता नहीं चला क्योंकि मुझमें TB के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं थे। हालाँकि साइनस के निदान और उसके उपचार से मुझे कुछ ख़ास मदद नहीं मिली।

एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक मैंने बहुत चक्कर काटे लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। डॉक्टरों ने मेरे माता पिता को सलाह दी कि वे एम्स या अपोलो जैसे बड़े अस्पतालों से परामर्श लें। चार साढ़े चार साल तक में बहुत ज़्यादा परेशान रही मैं आत्म ग्लानि से भर चुकी थी मुझे ऐसा लग रहा था कि अब मेरे पास कुछ ही दिन बचे हैं। उसके बाद मेरठ में मैंने अपने फेफड़े और मस्तिष्क का सिटी स्कैन कराया।

मेरे मस्तिष्क में तो काफ़ी गड़बड़ थी लेकिन मेरे फेफड़ों में एक छाया दिखाई दी जो TB की ओर इशारा कर रही थी दो महीने के अंदर-अंदर हमें पता चला की मैं एक TB से संक्रमित हूँ ।

मेरे TB के इलाज का पहला चरण शुरू हुआ और मेरे शरीर ने सकारात्मक परिणाम दिखाए | बुखार जो 104 डिग्री तक था अब 100 डिग्री होने लगा था लेकिन हर चीज़ का दुष्प्रभाव भी होता है। मैत्री, जोड़ों में दर्द और यूरिक एसिड का स्तर बढ़ना मेरे लिए बहुत कठिनाई भरे थे | किसी भी अन्य युवा की तरह मैं भी बीमारी के आघात से अधिक अपने करियर के बारे में चिंतित थी।

मैं अपना करियर पत्रकारिता में बनाना चाहती थी इसके लिए मैंने उड़ीसा के एक सरकारी कॉलेज में एडमिशन लिया। मैं बहुत ख़ुशनसीब हूँ कि मेरे माता पिता ने मुझे समर्थन किया और मेरी बीमारी को मेरे सपनों के रास्ते में नहीं आने दिया। कॉलेज में आज सब मुझे बीमार लड़की के रूप में याद रखते हैं लेकिन इसका मेरे प्रदर्शन पर कोई असर नहीं हुआ मेरा प्रदर्शन मेरे अन्य सहपाठियों से कहीं ज़्यादा बेहतर था।

यहाँ तक कि जब मैंने काम करना शुरू किया और मुझे एंटी -टूबर्क्युलर ट्रीटमेंट , पर रखा गया तब मैंने अपनी बीमारी को मेरे सपनों को भी ख़राब करने नहीं दिया। हालाँकि ये अनुभव बहुत कठिन था उदाहरण के तौर पर एक समय ऐसा था मैं अपने कंधे भी नहीं हिला पा रही थी। एक बार तो मेरा तापमान इतना बढ़ चुका था की मेरे माता पिता ने लौकी का इस्तेमाल कर मेरी हथेलियों पर उसे रगड़कर मेरा इलाज किया|

मैं शारीरिक रूप से कमज़ोर हो चुकी थी इसलिए ख़ुद से कुछ भी काम करना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रखा था। और धीरे-धीरे मैंने अपना आत्मविश्वास खो दिया और मुझे मानसिक आघात पहुँचा और मेरे मानसिक स्वास्थ्य को इस तरह से प्रभावित किया कि वह बद से बदतर होने लगा. काफ़ी समय तक मैं दर्द और अवसाद से घिरी हुई थी। मेरे लिए ख़ुद को इस हालत में देखना और असहनीय होता जा रहा था क्योंकि मैं बहुत कुछ हासिल करना था ।

मुझे एंटी -टूबर्क्युलर ट्रीटमेंट दिया जा रहा था उसके बावजूद की किसी डॉक्टर ने यह पुष्टि नहीं की कि मुझे TB है। न ही मेरी DR- TB की जाँच हुई और न ही केरेब्रस्पिनल फ्लूइड जाँच क्योंकि बैक्टीरिया उस फ्लूइड तक नहीं पहुँचा था। परीक्षण केवल मेरे दिमाग़ के छोटे से संक्रमित टुकड़े हुआ । लेकिन यह प्रक्रिया बहुत जटिल थी। हालाँकि इलाज का असर बहुत धीमा था लेकिन असर डाल था।

इस पूरी प्रक्रिया से निपटना कठिन था| लेकिन ओलांद इनके इंस्टिट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ने मेरी बहुत सहायता की। अब मेरे अंदर आत्मविश्वास लौटने लगा और मैं ख़ुद से बिना किसी मदद के चलने लगी थी।

मैं वास्तव में ख़ुद को बहुत भाग्यशाली समझती हूँ कि मेरे परिवार ने मेरी बहुत सहायता की और कभी भी कोई शिकायत किये बिना यह सुनिश्चित किया कि मैं आरामदायक रूप से अपने इलाज पर ध्यान दे रही हु ।

भारत में आज भी TB मरीज़ों को बहुत प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है जैसे समय पर इलाज न मिलना, समय पर निदान न होना जागरूकता न होने के कारण सामाजिक कलंक के कारण अवसाद और टूटते हुए आत्म विश्वास से जूझना पड़ता है|

हमें ज़रूरत है लोगों को जागरूक करने की और उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाने की तभी हम भारत से TB जैसी महामारी को दूर कर सकते हैं | हमें ज़रूरत है लोगों को जागरूक करने की और उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाने की तभी हम भारत से TB जैसी महामारी को दूर कर सक। अब मेरा इलाज पूरा हो चुका है लेकिन मैं यह बात दावे से कह सकती हूँ की इस अनुभव ने मेरे जीवन को बदल दिया | इसने मेरे परिवार के साथ मेरे रिश्ते को बहुत मजबूत किया मुझे धैर्यवान ,शांत और सशक्त बनाया। और मुझे इस क़ाबिल बनाया की आज मेरा आत्मविश्वास पहले से बहुत मजबूत हो चुका है. TB को हराना मुश्किल ज़रूर है लेकिन ये लड़ाई आपका जीवन बदल देती है।