कलंक और टीबी

शर्म अकसर TB के साथ आती है और TB से जुड़ी अतिरिक्त पीड़ा का कारण होता है। यह अकसर स्वस्थ होने की राह में एक रोड़ा होता है। नौकरी, समाजिक रिश्ते, रुतबा खोने का डर और शादी में होने वाली दिक्कतें इसके अलावा समाज में TB के मरीजों से होने वाला असवेदनशील व्यवहार, यह कुछ चुनौतियां हैं जिसका एक TB पीड़ित व्यक्ति को सामना करना पड़ता है। TB से जुड़े शर्म का इस बात पर भी असर होता है कि मरीज़ इलाज को किस हद तक पालन कर रहा है और उसका परिवार और समुदाय उससे कैसे व्यवहार करते हैं। यह सबकुछ पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है।

इसकी जड़ सामुदायिक और संस्थागत अज्ञान है। TB से जुड़े पूर्वाग्रह का सबसे आम कारण संक्रमण का डर होता है। दुसरी आम मगर ग़लत धारणा यह है कि TB गंदगी की वजह से होता है और इसीलिए यह मरीज़ की खुदकी गलती का नतीजा है। TB से जुड़ा पूर्वाग्रह इसके आमतौर पर HIV, गरीबी, कुपोषण, और निंदनीय व्यवहार से जुड़े होने के कारण है। इस पूर्वाग्रह के कारण पीड़ित को शर्म, भेदभाव, मानसिक तनाव, जांच में देरी, और अधूरे इलाज का सामना करना पड़ता है। TB आमतौर पर 6 महीने से दो साल में ठीक हो जाता है लेकिन इससे जुड़ा पूर्वाग्रह मरीज़ो से "वह जिसे TB हुया था।" बनकर काफी समय बाद तक जुड़ा रहता है।

TB के खिलाफ लड़ाई में इस पूर्वाग्रह और शर्मिंदगी को सम्बोधित करना ज़रूरी है। TB, इससे जुड़े पूर्वाग्रह, और पीड़ितों के दर्द के बारे में बड़े पैमाने पर संवेदीकरण योजनाओं की ज़रूरत है। चिकित्सकिय क्षेत्र के हर सदस्य के लिए भी संवेदीकरण आवश्यक है ताकि चिकित्सा भेदभाव व पूर्वाग्रह मुक्त हो। स्कूलों और कॉलेजों में विशेष वर्कशॉप और सेमिनार भी TB के बारे में जागरुकता फैलाने में मदद कर सकते हैं।

एक TB के मरीज़ का इस पूर्वाग्रह के साथ जीना बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है। उन्हें पूर्ण तरह से ठीक होने के लिए बस स्वीकृति और प्यार और साथ भरे माहौल की ज़रूरत है। बिना TB से जुड़े पूर्वाग्रह के बारे में बात किये हम TB पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते।