मुझे अपनी पहली जांच के बाद ही पता चल गया था की मुझे MDR TB है। आमतौर पर जो चार दवाइयां TB के मरीज़ों को बताई जाती है मेरा TB उनमे से तीन से सुरक्षित था। मेरी स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गयी। सिर्फ छः महीने में X-RAY में यह पता चल गया की मेरी हालत कितनी बुरी है। मेरा बांया फेफड़ा बर्बाद हो चुका था और मेरा दायां फेफड़ा भी संक्रमित था। मेरे डॉक्टर ने उसे बचने के लिए कोई ख़ास कदम नहीं उठाये।
मैं बहुत बहादुरी से TB से लड़ी लेकिन इसने मेरी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल दी। मेरी बिमारी के शारीरिक लक्षणों का असर मेरे मानसिक स्वस्थ्य पर भी पड़ने लगा। दवाइओं की वजह से मुझे बहुत अकसर मूड स्विंग्स होने लगे और मेरे मानसिक संतुलन पर भी इनका उल्टा असर हुआ। इंजेक्शंस ने मेरी जान बचायी मगर वह बहुत दर्दनाक थे। इनके एक साइड इफ़ेक्ट के कारण बोलने और सुनने में दिक्कत भी होने लगी। वजह से मुझे और भी अकेला महसूस होने लगा। इशारो के इस्तेमाल से सिर्फ मेरी छोटी बहन मुझसे बात कर पाती थी।
हर चीज़ मेरे काबू के बाहर थी और मैं खुद को अपराधी और लाचार महसूस करती थी। मेरी छोटी बहन को भी TB हो गया क्योंकि डॉक्टरों ने मेरे घरवालों को यह नहीं बताया था की TB घर पर कैसे फैलता है। हालांकि वह इससे जल्दी उभर गयी क्योंकि उसके TB का जल्दी पता चल गया और समय से उसका इलाज शुरू हो गया। लेकिन मुझे ना सिर्फ TB के शारीरिक और मानसिक प्रभावों से लड़ना पड़ा बल्कि TB से जुड़े सामाजिक कलंक से भी जूझना पड़ा।
मेरे कुछ दोस्तों ने मुझसे मिलना छोड़ दिया। TB के बारे में इतनी गलतफहमियां लोगों के दिमाग में घर कर गयी है की कई लोग मुझसे अभी भी. मेरे पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद भी, मिलने से कतराते हैं। मेरे माँ बाप मेरे रिश्तेदारों की असवेंदनशीलता और अज्ञान से परेशान हो गए। उन्होंने वो सब किया जो वो कर सकते थे और फिर भी उसका कोई असर नहीं हुआ क्योंकि जिन जांच रिपोर्ट और दोस्तों से वह सलाह ले रहे थे वह जांच की रिपोर्ट लगातार गलत थी और डॉक्टरों को खुद भी मेरी बिमारी की कोई ख़ास जानकारी नहीं थी। तीन साल नियमित तौर पर दवाइयां लेने पर भी मेरी हालत बिगड़ती चली गयी।
मैंने और मेरे परिवार ने आखिरी बार हिम्मत करके मुंबई के हिंदुजा अस्पताल का रुख किया। यहां मुझे दवाइयां दी गयी जिनमे से एक दवाई ( Bedaquiline) अभी शुरूआती शोध के दौर में थी।
आज मैं बिलकुल ठिक हूँ लेकिन उन मुश्किल तीन सालों का असर मुझपर और मेरे परिवार पर अभी भी है। TB से पीड़ित एक बेटी का इलाज करवाने में और उसके कानों की सर्जरी करवाने में, ताकि मैं दुबारा सुन सकूँ, मेरे परिवार पर काफी आर्थिक ज़ोर पड़ा।
अब मैं दोबारा सुन सकती हूँ और काम भी कर सकती हूँ। मैं आज पेशे से एक आर्किटेक्ट हूँ। इसके अलावा मैं निडर होकर अपनी कहानी सबके साथ बांटती हूँ ताकि लोगों को इस बीमारी की सचाई का पता चले।