मैं अक्टूबर 2011 में अपने फनीचर और होमस्टोर व्यवसाय में व्यस्त थी।वे दिन बेहद लम्बे और तनावपूर्ण थे। लेकिन मैं अपनी तरफ से पूरा जोर लगाती रही।
मुझे यह एहसास ही नहीं हुआ की मुझे खांसते हुए 2 महीने हो चुके थे। मेरे ऑफिस में बहुत नमी हुआ करती थी, तो मुझे लगा की शायद रोजाना 10 से 12 घंटे वहां गुज़ारने की वजह से मुझे कोई एलर्जी हो रही है। इसके अलावा, मेरे अकाउंटेंट मुझसे भी ज़्यादा खांस रहे थे ।
मैं उनके साथ दिन में कई घण्टे काम करते थी। मेरे बच्चे हैं, घर भी संभालना था। मेरी ज़िन्दगी में काफी उथल-पुथल मची हुई थी। इस भाग-दौड़ में मैंने उन सँकेतों पर ध्यान ही नहीं दिया जो मेरा शरीर मुझे लगातार दे रहा था।
मैंने सोचा की मैं तो अपने स्वास्थय का पूरा ध्यान रखती हूं, व्यायाम करती हूं, खान-पान पर नजर रखती हूं, इसलिए मुझे कुछ नहीं होगा। लेकिन जब मामला और गम्भीर होगया तो मैं डॉक्टर के पास गयी। उन्होंने कहा कि मेरी छाती में मामूली सा सक्रंमण है और दवाइयां दी। मैं ठीक नहीं हुई लेकीन मेरे पास इस पर ध्यान देने का वक्त नहीं था। फिर एक रात अचानक छाती में तेज़ दर्द से मेरी आखं खुली। मेरे पति ने अपने एक डॉक्टर कजन को घर बुलाया। उन्होंने मुझे तुरन्त एक्स-रे करवाने के लिये कहा।
मेरे एक्स-रे में पता चला की मेरे शरीर में टीबी काफी गहराई तक फैल चुका है। मेरा एक फेफड़ा छलनी है। छाती रोग विशेषज्ञ ने बताया कि उन्होंने मेरे जैसे शिक्षित और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में ऐसा भयकंर सक्रंमण नहीं देखा।
हैरानी की बात है की उस दिन तक तो मुझे यही लगता था की टीबी केवल झुग्गी-झोपड़ीयों में रहने वाले लोगों में फैलने वाला रोग है। इस टेस्ट रिपोर्ट ने मुझे चौंका दिया था। मेरे मन में तरह-तरह के विचार आने लगे- इतना जागरुक होते हुए भी मैंने चीजों को इस हद तक कैसे बिगड़ने दिया? मेरे द्वारा टीबी मेरे बच्चों, परिवार और स्टाफ तक तो नहीं पहुंच गया? क्या अब मैं काम कर सकूंगी? मेरे डॉक्टर ने मुझे बताया की कुछ दिन की देर होने पर मेरे हालात बद से बद्तर हो सकती थी।
मेरा वजन घटकर 42 कीलो होगया था, शरीर कमजोर और बेजान लग रहा था। लेकिन मेरे सामने हार का विकल्प नहीं था। मैं हर कीमत पर टीबी को हराना चाहती थी। इसके बीच के हफ्तों में मैंने अपने बच्चों को गले नहीं लगाया, लोगों से दूर रही, और मास्क पहनकर काम किया। मुझे हमेशा थकान रहती थी, जी मिचलाता रहता था, भूख खत्म हो चुकी थी। मुझे दी गई दवाओं से निकले पसीने के कारण मेरे सभी कपड़ों पर पीले दाग पड़ चुके थे। मुझे बिस्तर से उतरने में भी परेशानी होती थी। मैंने पहले के दिनों में अपनी फिटनेस का ख्याल रखा था इसलिए मेरा शरीर थोड़ी ठीक अवस्था में था। मेरे पति ने अपने काम से कुछ दिनों की छुट्टी ली लेकिन उसके बिना घर चलाने, बच्चों का स्कूल लिखने और अपना काम संभालने का भूत फिर से मेरे कंधों पर आ गया।
मेरे पास आराम करने की सहूलियत नहीं थी। कभी-कभी सोचती थी की कहीं मैं मर न जाऊं
व्यायाम से मुझे दोबारा अपने पैरों पे खड़े होने की हिम्मत मिली। मुझे 4 प्रकार की दवाओं का कॉम्बो दिया गया। दवा ने असर दिखाना शरू किया और चार महीने में टीबी का संक्रमण कम होने लगा। मैं लोगों को टीबी के बारे में बताने से हिचक रही थी। मुझे नहीं पता था की उनकी प्रक्रिया क्या होगी । मैंने सबको बस इतना बताया की मेरी छाती में एक गंभीर संक्रमण है। मैंने अपने बच्चों की सेहत पर भी नज़र रखी। मैंने अपने अकाउंटेंट की जबरन जांच करवाई तो पता चला की उसे भी टीबी है।
टीबीमुक्त घोषित होते ही मैंने अपना सारा ध्यान अपनी सेहत पर लगाया। मुझे सांस लेने में दिक्क्त हो रही थी तो मैंने अपने फेफड़ो की शमता बढ़ाने पर गौर किया।
मैंने दोबारा योग शुरू किया और उसके अलावा भी एक फिटनेस प्रोग्राम शुरू किया जिससे मैं एक एथलीट जितनी फिट हो गयी।
मेरे शरीर में इस बिमारी के फैलने में तनाव का बहुत बड़ा हाँथ था। तनाव आपके शरीर को निरंतर ।कमज़ोर करता है। मेरी लापरवाही भी एक कारण थी। मैंने अपने लक्षणों को बहुत दिन तक नज़रअंदाज़ किया। अब मेरा लक्ष्य है की मैं लोगों को जागरुक बनाऊं। उन्हें बताऊं की पौष्टिक आहार के साथ ही फिट रहना भी ज़रूरी है। यह बिमारी किसको भी हो सकती है तो अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहे।