"नवंबर 2008 में जब मैं 26 साल की थी तब मुझे बहुत ज़िद्दी खांसी हुई जिसे की तुरंत इलाज की ज़रूरत थी। मैंने अपने पास के ही एक डॉक्टर को दिखया तो उन्होंने कहा की मुझे तले हुए और मीठे खाने से allergy है।"

केयूरी भानुशाली कॉपीराइटर, एमडीआर टीबी विजेता

नवंबर 2008 में जब मैं 26 साल की थी तब मुझे बहुत ज़िद्दी खांसी हुई जिसे की तुरंत इलाज की ज़रूरत थी। मैंने अपने पास के ही एक डॉक्टर को दिखया तो उन्होंने कहा की मुझे तले हुए और मीठे खाने से allergy है। मैंने उनकी बात मानी और साथ ही साथ वह दवाइयां भी लेने लगी जो उन्होंने मुझे लिख के दी थी। इससे कुछ समय के लिए मेरी खांसी ठीक हो गयी मगर वो कुछ दिनों में लौट भी आयी। इस बार मुझे हांसी के साथ हल्का बुखार भी था।

मुझे याद है की मेरा X-RAY देखते वक़्त मेरे डॉक्टर का मुँह सफेद पड़ गया था। मुझे तुरंत एक विशेषज्ञ को दिखने को कहा गया जिसने मुझसे कहा की खुशकिस्मती से यह बस TB है। उन्होंने मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ और टेस्ट कराने को कहा जिसके बाद पता चला की मुझे सच में TB है।

मैं चिंतित थी, मैंने अपने डॉक्टर से पूछा की क्या मैं अपने परिवार को संक्रमित कर सकती हूँ। उन्होंने ने मुझे बताया की मेरा TB extra-pulmonary है जिसका मतलब ये है की इसका संक्रमण नहीं फैलता। मैंने एक विशेषज्ञ की निगरानी में अपना इलाज शुरू किया। एक हफ्ते में ही मुझ पर साइड इफेक्ट्स दिखने लगे और मेरी ज़िन्दगी मुश्किल हो गयी। मेरा पेट हमेशा खराब रहने लगा और मुझे उल्टियां भी होने लगी। मैंने अपने डॉक्टर से बात की और उन्होंने मेरी दवाइयों के डोज़ में कुछ बदलाव किये।

कुछ ही समय में मेरे शरीर पर दवाइयों के साइड इफेक्ट्स बंद होगये और मेरी ज़िन्दगी थोड़ी-बहुत नार्मल हो गयी। मुझसे कहा गया था की मैं नौ महीने में TB मुक्त हो जाउंगी और मैं बहुत उम्मीद से इसका इंतज़ार करने लगी थी। मुझे गलत सूचना दी गयी थी।

10 महीने तक दवाइयां लेने के बाद मेरी छाती के दाएं तरफ एक उभार मिला। मैंने डॉक्टर को इस बारे में बताया तो उन्होंने मुझे सर्जरी करवाने को कहा। इस दौरान मैंने विशेषज्ञ की निगरानी में अपना इलाज दो और महीनो तक जारी रखा। कुछ दिनों बाद जब मेरे डॉक्टर ने मेरी रिपोर्ट देखी तो उन्होंने कहा "ग्रंथियां सूज गयी हैं।" "उसका मतलब क्या है?" "वह ठीक नहीं हुआ है।" और ऐसे ही मुझे एक दूसरे अस्प्ताल में एक दुसरे डॉक्टर के पास भेज दिया गया।

अगले दिन मैं जाने माने चेस्ट डॉक्टर ज़रीर उद्वाडिया से मिली। उन्होंने मेरे फाइल देखी और कंधे उचकते हुए कहा " TB के इलाज की चार दवाइया होती है और ये उनका भी ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाए।" उन्होंने कुछ और टेस्ट्स करवाने को कहा और मेरी दवाइयों में कुछ बदलाव किये। जल्द ही मेरे TB को MDR TB घोषित क्र दिया गया। मुझे अगले दो सालों तक इंजेक्शंस पड़े और मेरा इलाज भी चलता रहा।

मुझे हर छह महीने में उनसे अपने X-RAY और खून की रिपोर्ट के साथ मिलना पड़ता था। मैं इस इलाज की तरफ अच्छी प्रतिक्रिया देने लगी। मुझे अच्छा महसूस होने लगा और मुझमें फिरसे उम्मीद जगी। और 2011 में मुझे TB मुक्त घोषित कर दिया गया। मेरी TB से लड़ाई कठिन नहीं थी और इसका सारा श्रेय मेरे परिवार को जाता है। खासकर मेरे पिता को जिन्होंने मेरे इलाज का खर्च उठाया। मुझे सिर्फ शारीरिक दर्द झेलना पड़ा जो की मेरे इलाज का साइड इफ़ेक्ट था और इसके अलावा मुझे मुहांसे हुए। इन दो चीज़ों के अलावा कोई कह नहीं सकता था की मैं एक जानलेवा बिमारी से लड़ रहीं हूँ।

इसके बावजूद TB ने मेरी ज़िन्दगी कई स्तरों पर बाधित की। हर किसी की तरह मेरा भी एक प्लान था की मैं 26 पर शादी करुँगी और 29 तक बच्चे और बाकी ज़िन्दगी उन्हें बढ़ता हुआ देखूंगी। वो सब तीतर-बितर हो गया। लेकिन TB से निपटने मुझे एक बहुत ज़रूरी सीख दी- की मैं बिना कठिनाईओं वाली एक आसान ज़िन्दगी ढूंढ रही थी। TB से लड़ते हुए मैंने सीखा की व्यक्ति दर्द झेल कर ही बढ़ सकता है।

TB का इलाज संभव है। हमें मिलकर इससे लड़ना होगा। TB को हराने के लिए सही इलाज, जांच, और जागरूकता बहुत ज़रूरी है। हमें TB से लड़ना है, TB पीड़ित से नहीं।