टीबी से जीवित बचे मरीज़ों के सुझाव: कैसे भारत के टीबी संकट का व्यापक समाधान करें?
सरकार भारत में टीबी संकट से निपटने के लिए कदम उठा रही है, ऐसे में हम अनगिनत टीबी सर्वाइवर यानि टीबी से पूरी तरह ठीक हुए मरीज़ ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार एकत्रित किये हैं। इन मुद्दों पर भारत में टीबी से लड़ने के लिए तत्काल ध्यान देने और कार्रवाई की जरूरत है। इन पर सरकार की कार्रवाई से ना केवल टीबी नियंत्रण बढ़ने की संभावना है, बल्कि सार्वभौमिक पहुंच की इसकी प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद भी मिलेगी। ये सुझाव टीबी पर जीत हासिल करने के हमारे अनुभवों और हमारे पास मदद के लिए आए विभिन्न टीबी पीड़ितों से प्राप्त जानकारी पर आधारित हैं।
टीबी की रोकथाम करने और बिमारी का कलंक कम करने के लिए समुदायों के बीच सार्वजनिक जागरूकता सुनिश्चित करें:भारत को तत्काल सार्वजनिक जागरूकता, रोकथाम, सामुदायिक सहभागिता और कलंक कम करने के मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। टीबी सर्वाइवर और ऐसे टीबी मरीज़ जिन्हें लगातार देखभाल की जरुरत है, बड़े पैमाने पर फैले भेदभाव के कारण अक्सर उपचार तक पहुंच नहीं पाते या फिर टीबी के बारे में बोलने से डरते हैं। टीबी से हमारी लड़ाई की शुरुआत लोगों और समुदायों को सशक्त बनाने और इस बिमारी का कलंक कम करने से होनी चाहिए। इसके लिए सरकार निम्न कदम उठा सकती है:
सभी तरह की टीबी, उसके लक्षणों और जल्द रोग-निदान व उपचार की जरूरत के बारे में जागरूकता सुनिश्चित करने हेतु एक विशाल मल्टी-मीडिया जागरूकता अभियान तैयार किया जाए।
एक्सट्रा पल्मनरी टीबी पर जागरूकता निर्माण की जाए, जिसे अब तक नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है और इसके पीड़ित जांच तथा इलाज में देरी से जूझ रहे हैं।
प्रभावी संवाद के माध्यम से यह बताना कि टीबी हम सब को प्रभावित करती है और हर प्रकार की टीबी से जुड़े कलंक को कम करने का प्रयास हो।
टीबी एंबेसेडर्स और सर्वाइवर्स को साथ लेकर स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर काम करते हुए, सार्वजनिक अभियानों द्वारा जागरूकता निर्माण करने तथा कलंक मिटाने हेतु लोगों को सशक्त बनाया जाए।
एक मजबूत निरोधक साधन के रूप में कार्य करने के लिए सामुदायिक और संस्थागत संक्रमण नियंत्रण के उपायों को विशेष रूप से ज्यादा जोखिम वाले इलाकों में मजबूत बनाया जाए।
नीति और संचार रणनीति विकसित करने में सभी हितधारकों, विशेष रूप से रोगी समूहों के साथ संयुक्त कार्यक्रम बनाए जाएं।
टीबी प्रभावित व्यक्तियों उनके परिवारों अनिवार्य रूप से परामर्श मिले, ताकि टीबी की रोकथाम और परिजनों को मदद सुनिश्चित हो सके।
हर भारतीय के लिए शीघ्र एवं सही निदान: व्यापक शोध से पता चला है कि रोग की पहचान में देरी और इसमें होने वाली गलतियां, भारत में टीबी की महामारी और दवा प्रतिरोध के बढ़ते खतरे के प्रमुख कारण हैं। भारत में गुणवत्तापूर्ण रोग निदान की सार्वभौमिक पहुंच का लक्ष्य हासिल करने के लिए:
2017 तक स्प्यूटम स्मियर माइक्रोस्कोपी के स्थान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यताप्राप्त अत्यधिक संवेदनशील मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स लाया जाए, साथ ही लिक्विड कल्चर और डीएसटी की क्षमता भी बढ़ानी होगी।
सभी प्रकार की टीबी की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करने के लिए नये डायग्नोस्टिक परीक्षण में तेजी लाएं और सभी टीबी रोगियों को सार्वभौमिक दवा संवेदनशीलता परीक्षण (डीएसटी) मुहैया कराएं।
सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में इलाज की ज़रूरत वाले हर भारतीय को मुफ्त एवं सही टीबी जांच की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कार्यप्रणाली बनाएं।
सर्वश्रेष्ठ से कमतर जांच के चलन या इसकी शुरुआत को रोकने के लिए यह सुनिश्चित करे कि सभी नए टीबी डायग्नोस्टिक्स अनुमति से पहले कठोर सत्यापन से गुजरें।
डीआर टीबी संकट का समाधान: माना जाता है कि भारत में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी के करीब 100,000 मामले सामने आए हैं, जो इसे एक भयावह महामारी बनाते हैं। आशंका है कि यह भारत के डॉट्स कार्यक्रम की सफलता को नष्ट कर देगी। इस संकट से निपटने के लिए सरकार को चाहिए कि:
हर टीबी मरीज को एक ड्रग संवेदनशीलता जांच तत्काल उपलब्ध कराए, जिससे कि एमडीआर और डीआर-टीबी के अधिक गंभीर प्रकारों की तेजी से पहचान हो सके।
एक प्रमाणित आहार देने की बजाय हमें विशिष्ट चिकित्सा आहार दिया जाए, और केवल उन्हीं दवाओं को चुनें जिनसे टीबी बैक्टीरिया के संवेदनशील होने का हमें पता हो।
दो नई दवाओं बेडाक्वालाइन और डेलामेनिड की उपलब्धता बढ़ाने पर विचार हो। विशेष रूप से निजी क्षेत्र में रोगियों की आसानी के लिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी मरीज़ बिना इलाज वापस ना जाए।
मरीज़ों की जरुरत समझें: पोषण और मदद: टीबी से तब तक नहीं लड़ा जा सकता जब तक हम यह नहीं समझते कि रोगियों को इस बिमारी से लड़ने के लिए किन चीज़ों की जरूरत है। टीबी इलाज के उत्कृष्ट परिणामों के लिए बेहतर पोषण और निरंतर परामर्श आवश्यक है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए भारत को चाहिए कि:
कम वजन/गरीबी रेखा से नीचे के सभी टीबी रोगियों को भोजन/पूरक पोषण प्रदान करे - यह बचाव का आधार बनाने के साथ-साथ पोषण के मुद्दों को भी हल करेगा.
उपचार के दौरान टीबी रोगियों और उनके परिवारों की मदद करने के लिए आर्थिक सहायता कार्यक्रमों की शुरुआत करे। इससे उन्हें न केवल और गरीबी से बचाया जा सकेगा बल्कि परिवार का मनोबल बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इसे क्यूबा में लागू किया गया और बचाव सुनिश्चित करने एवं आपातकालीन बड़े स्वास्थ्य खर्च को कम करने में इसके उल्लेखनीय परिणाम हासिल हुए हैं।
सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में सलाहकारों की मौजूदगी सुनिश्चित की जाए, जो अनिवार्य रूप से ऐसे जोखिम के कारणों की पहचान एवं समाधान करेंगे, जिनसे निम्न पोषण स्तर, धूम्रपान, शराबखोरी और अपर्याप्त सामाजिक सहायता जैसे असंतोषजनक परिणाम सामने आते हों। इनका सामना करने में रोगियों की मदद भी करेंगे।
टीबी सर्ववाइवर्स को सहकर्मी सलाहकार और डॉट्स प्रदाताओं के रूप में नियुक्त किया जाए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि मरीजों के एक सशक्त समुदाय तैयार हो और उन्हें मदद मिल सके।
स्वास्थ्य सूचना प्रणाली: भारत टीबी को तब तक नहीं हरा सकता जब तक यहां टीबी के लिए एक मजबूत व्यापक निगरानी प्रणाली तैयार नहीं होती। टीबी नियंत्रण की योजना और कार्रवाई में मदद करने के लिए इस दिशा में तेज़ी से कदम उठाना होगा।
सरकार को मरीज़ों की गोपनीय जानकारियां सग्रह करने वाली ई-प्रणाली निक्षय को पुनर्जीवित तथा विस्तार करना होगा। साथ ही इसके प्रभावी इस्तेमाल से बिमारी के प्रसार का आंकलन करते हुए योजनाबद्ध हस्तक्षेप करने की ज़रूरत है।
देश में टीबी मामलों की सही संख्या समझने और निजी क्षेत्र में हो रहे इलाज की अच्छी तरह निगरानी के लिए इनकी सूचना देना अनिवार्य बनाया जाए।
निजी क्षेत्र को शामिल करें: एनएफएचएस के मुताबिक, 70 फीसदी भारतीय टीबी सहित अन्य बीमारियों का इलाज़ निजी क्षेत्र में कराते हैं। सबूतों से पता चला है कि इस क्षेत्र में होने वाला गलत उपचार भी डीआर टीबी के मामलों को बढाता है। ऐसे कई महत्वपूर्ण कोशिशें हैं कि जिनके जरिए टीबी नियंत्रण के लिए निजी क्षेत्र को नए तरीके से जोड़ा जा सकता है और उनके साथ साझेदारी की जा सकती है। सरकार को चाहिए कि:
नई प्रोत्साहन आधारित योजनाओं के माध्यम से निजी क्षेत्र को जोड़े जैसे कि मुंबई और पटना में कार्यान्वित की जा रही सार्वजनिक निजी इंटरफ़ेस एजेंसियां.
भारत में टीबी देखभाल के मानकों का प्रचार-प्रसार और इसके प्रशिक्षण का विस्तार किया जाए और इन मानकों के अनुपालन की सतत निगरानी.
यह सुनिश्चित किया जाए कि निजी क्षेत्र में सभी रोगियों को सही जांच और उचित उपचार नि:शुल्क उपलब्ध है। डीआर टीबी के मामलों के लिए प्राथमिकता के आधार पर इसे राष्ट्रव्यापी रूप से लागू किया जाना चाहिए.
टीबी इलाज में बदलावों को प्राथमिकता: भारत में टीबी उपचार प्रक्रियाएं अब भी आपसी संपर्क में नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय कार्यप्रणाली और सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के बीच तालमेल की जरूरत है। इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन निम्न हो सकते हैं:
मान्यताप्राप्त सार्वजनिक और निजी दुकानों/दवाखानों पर प्रत्येक रोगी के लिए पूरे उपचार की अवधि के लिए गुणवत्ता प्रमाणित दवाएं उपलब्ध कराना।
स्वास्थ्यकर्मियों को पुनः कौशल प्रशिक्षण सुनिश्चित करना जिससे मरीज़ों को अनियमित आहार से दैनिक नियमित आहार के लिए प्रत्यक्ष निगरानी में स्थानांतरित किया जाए। इससे सभी स्वास्थ्य सेवा के सभी क्षेत्रों एक समान देखभाल हो सकेगी।
उचित इलाज सुनिश्चित करने और एमडीआर टीबी के मामलों को एक्सडीआर टीबी बनने से रोकने के लिए सभी संदिग्ध दवा प्रतिरोधी टीबी मरीज़ों के लिए एक मानक रूप में दवा संवेदनशीलता परीक्षण निर्देशित उपचार प्रदान करना।
“सरकार भारत में टीबी संकट से निपटने के लिए कदम उठा रही है, ऐसे में हम अनगिनत टीबी सर्वाइवर यानि टीबी से पूरी तरह ठीक हुए मरीज़ ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार एकत्रित किये हैं।"
यह सारी अनुशसाएं हमारे अपने अपने अनुभवों से उत्पन्न हुई हैं। हम सरकार से निवेदन करते हैं कि, इन अनुशसयों पर काम किया जाए और साथ ही साथ टीबी निवारण एवं नियंत्रण को सुनिश्चित किया जाए।