रोगियों का संपर्क समूह

अन्य बिमारियों में, जहां मरीज़ इनसे जुड़ी नीतियों और कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं, साथ ही क्रियान्वयन और निगरानी में भी शामिल रहते हैं, वहीं भारत के टीबी नियंत्रण उपायों में इस बिमारी से ठीक हुए मरीज़ों की कोई भूमिका नहीं है।

हमें बिना देरी किए टीबी से ठीक हुए लोगों को सक्षम बनाने की ज़रूरत है ताकि वे टीबी पीड़ितों की ज़रूरतों के लिए आवाज़ उठा सकें। नीति निर्धारण व कार्यक्रम तैयार करने में उनकी हिस्सेदारी ज़रूरी है। भारत को टीबी मरीज़ के ऐसे विशेषज्ञों की आवश्यकता है, जो कार्यक्रम क्रियान्वयन को मज़बूत बनाने तथा गहरी जड़ें जमाए बैठे इस बिमारी के कलंक को मिटाने में मदद कर सकें।

इस परिप्रेक्ष्य में, हमने एक टीबी नेटवर्क बनाने की पहल की है, जिसका संचालन टीबी रोगी और इस बिमारी से ठीक हुए मरीज़ खुद करेंगे। यह सभी मिलकर अपने मुद्दों को उठाएंगे तथा संभावित उपायों की पहचान करने में मदद करेंगे। मरीज़ों को यह नेटवर्क अन्य पीड़ितों का समर्थन और उनकी आवाज़ बनते हुए राष्ट्रीय एवं जमीनी स्तर पर टीबी नियंत्रण हेतु सक्रिय रहेगा।

टीबी को मात देने वाले यह लोग विभिन्न राज्यों, आर्थिक पृष्ठभूमि और अनुभवों के साथ आएंगे। यह लोग एक साथ मिलकर काम करेंगे और एक मरीज़ के नज़रिये से टीबी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करेंगे और उन्हें सामने लाएंगे। यह नेटवर्क एक सामाजिक प्रतिनिधि के जरिये, टीबी जांच, उपचार तथा देखभाल की चुनौतियां उजागर करने में मरीज़ों की मदद करेगा।


विस्तृत रूप से, यह नेटवर्क निम्न लक्ष्यों पर काम करेगाः

  • साथ मिलकर टीबी से जुड़े प्रमुख मुद्दों की पहचान करना और इनसे जुड़ी सिफारिशें सरकार को भेजना

  • इन मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार से संपर्क बनाना

  • विभिन्न समुदायों में लगातार जन-जागरूकता निर्माण करना, खासकर निजी क्षेत्र में

  • रोगियों के अधिकारों की रक्षा, उनका समर्थन और उनकी ज़रूरतों को सामने लाना

  • टीबी रोगी की अनदेखी, दोषपूर्ण इलाज या गलत प्रक्रियाओं को उजागर करना

  • टीबी रोगियों को जांच, इलाज, पोषण और अन्य चुनौतियों से जुड़े मामलों में मदद करना